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मोंठ–ग्राम पांडोरी के ध्वार की माता मंदिर पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के आखरी दिन सुदामा चरित्र का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को भावुक कर दिया।

मोंठ–ग्राम पांडोरी के ध्वार की माता मंदिर पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के आखरी दिन सुदामा चरित्र का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को भावुक कर दिया।कथा व्यास प.विकास दुबे ने कहा कि मित्रता श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह की होनी चाहिए। संसार में सुदामा सबसे अनोखे भगवान कृष्ण के भक्त रहे हैं। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, उतने ही वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान कृष्ण की इच्छा पर सौंप दिया था। गरीबी से परेशान जब सुदामा की पत्नी ने उनसे अपने मित्र श्रीकृष्ण से सहायता लेने और द्वारका जाने के लिए कहा तो सुदामा द्वारका पहुंचे। जहां द्वारकाधीश कृष्ण के द्वारपालों ने उनका महल के बाहर रास्ता रोक लिया लेकिन जब सुदामा के आने की जानकारी भगवान कृष्ण को हुई तो वह अपने मित्र सुदामा से मिलने नंगे पैर दौड़ चले आए और सुदामा से मिलकर उसे गले से लगा लिया।कथा परीक्षित आरती अर्जुन धाकड़ ने आरती की।

रानू पाण्डेय मोंठ

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